मॉडर्न प्रकृति


अपनी आंखो के सामने कोई दिलकश नज़ारा देखता हू तो एक सवाल आज कल मेरे मन मे आता है। क्या यह मकान भी अब प्रकृति में आते है? क्योंकि मैं इनको भी बढ़ते, बूढ़ा होते देखता हू। जैसे किसी पेड़ को देखता हू, यह मकान भी आसरा देते है पंछियों को जानवरों को जैसे पेड़ देते है। पता है मैने मकान के अंदर जज्बात महसूस किए है जब कभी खुशी का मोका होता है तो खिल उठता है, हसने लगता है, सजने संवरने लगता है और जब कभी दुखी होता है तो बेजान मुरझाया सा हो जाता है। पतानी सिर्फ मैं ही हूं या किसी और को भी यह महसूस होता है। पता है जैसे किसी के छोड़ जाने पर एक आशिक, एक माँ, एक परिवार उसकी याद में बेहाल हो जाता है वैसे ही था मकान भी बेहाल हो जाते है ना सजते है ना खुश होते जैसे हम होश खो देते है खाना पीना कहना सुनना सब भूल जाते है वैसे ही यह भी हो जाते है मैने यह खंडरो को देखकर महसूस किया है। तो मेरे ख्याल से तो यह अब प्रकृति का ही हिस्सा है जैसे हम या कोई और जीव जंतु।

"बेजान नही हो तुम ए ईट पत्थर से बने हुए मकान।
मैंने देखा है तुम्हे खुदकी ही तरह जीते हुए।"

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