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रेत पर रेत से रेत का घर बनाऊँगा मैं!
अब सबसे एसे ही रिश्ते निभाऊँगा मैं!
क़दम दो-क़दम ही बड़ाऊँगा मैं!
भागकर अब ना गले लगाऊँगा मैं!
दर्द बारिश की बूँदो को भी नही पता चलेगा अब!
आँसुओं को बूँदो से नही मिलाऊँगा मैं!
जा कर सिर अपना क़दमों में रख देता था!
भगवान अब तेरे घर भी नही आऊँगा मैं!
पत्थर से टूटा हूँ, टूटा काँच हो गया हूँ!
ज़्यादा पास आओगे तो चुभ जाऊँगा मैं!
जिस्म और आत्मा की बातें मत करना संबे मेरे!
रूह तोड़ दूँगा, जिस्म नोच खाऊँगा मैं!
ग़ैरों की तारीफ़ करो चाहें गिनाओ कमियाँ मेरी!
अपनो की बातें करोगे तो उठकर चला जाऊँगा मैं!
तपती धूप में बैठा हैं सनी कुछ तो बात हैं!
ख़ैर छोड़ो अब उसकी सुन नही पाऊँगा मैं!
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