Short story "कोयल और कौआ"

"कोयल और कौआ"

एक कौआ था घोसले में परिवार के साथ रहता था, छोटा था और खुश भी, माँ भाई-बहन ही उसकी दुनिया थे। पर एक दिन तो उसे बड़ा होना ही था असल दुनिया मे अपने पंख खोलने ही थे, तो एक रोज परिवार ने और उसके भाई बहन ने घोसला छोड़कर दुनिया देखने का फैसला ले लिया और कौए को कहा की निकलो और उड़ो, कौआ डर गया उसे अपनी दुनिया नही छोड़नी थी वो रोया और मना करने लगा पर सब उसे साथ आने को कह कर उड़ गए, फिर कौए ने सोचा और मन बना लिया घोंसला छोड़ने का, कौआ घोंसले से निकलता हैं पर उसे उड़ना आता ही नही तो धम करके जमीन पर गिर जाता हैं, चोट लगती हैं तो बच्चा सिर्फ एक ही आवाज़ लगाता हैं, माँ! माँ! माँ! माँ! पर माँ नही आती । फिर वो अपने भाई बहन सबको बारी-बारी पुकारता हैं कोई नही आता! जब उसे ये विशवास हो जाता हैं कि उसे खुद ही उठना होगा तो वो कोशिश करता हैं फिर से उड़ता है पर फिर धम से नीचे गिर जाता हैं! काफ़ी कोशिशों के बाद वो उड़ना सिख जाता हैं, अब वो देखता हैं कि दुनिया तो बहुत बड़ी हैं और वो अपने घर को ही दुनिया मानता था! अब जो उड़ना सिख लिया था उसने तो ईधर उधर बड़ी उमंग के साथ घूमता हैं, चारो तरफ नीला खुला आसमा और इतने सारे पँछी! बिचारे की खुशी ज्यादा देर तक साथ नही रही, उसने देखा कि उसका परिवार कही दूर निकल चुका हैं उसने ढूँढा पर कोई नही मिला! हार कर खुदसे एक घोसला बनाया इसमे भी वो कई बार हारा, कई रातें बिना घर के गुजारी पत्तो के बीच छुपकर रहा! पर घर बना ही लिया छोटा सा था पर उसके लिए बहुत अच्छा था कमिया थी पर उसको वो नही दिखती थीं! अब जब घर बन गया तो उसने आसमा और अच्छे से देखना चाहा पर बड़े पंछियों ने हमला कर उसको ऊँचा उड़ने से डरा दिया! कौआ जब परिवार के साथ था तो उसे इन सब खतरों के बारे में नही पता था और ना ही उसे ये पता था कि वो कौआ हैं पंछियों की बिरादरी में सबसे अलग और नापसन्द, उसको ये भेद-भाव नही पता थे वो तो बस यह जानता था कि सब पँछी है और सब उड़ते है इस नीले आसमा में साथ साथ, पर जब वो परिवार से अलग हुआ तो उसने कोशिश की कि वो दोस्त बनाए और पंछियों से मिले साथ मे उड़े खाए पिए पर जब भी वो किसी पँछी के साथ बैठता वो या तो कौए को भगा देते या खुद उड़ जाते । पर एक रोज वो एक कोयल के पास एक डाली पर बैठ गया तो उस कोयल ने कौए को उड़ाया नही बल्कि उससे बातें की और कुछ दिनों में दोनों अच्छे दोस्त बन गए! कौए को कोयल से प्यार हो गया पर कोयल ने उसे बताया था कि वो किसी और को चहाती हैं इसलिए उसने कभी अपने प्यार को ज़ाहिर नही किया! दोस्ती गहरी हो गई दोनो हँसते खेलते पागलपंती करते उड़ते दूसरे पंछियो की हँसी उड़ाते खुश रहते पर हमारा कौआ अकेले में तब भी अकेला होने की वजह से रोता परिवार को याद करता पर उसने कभी अपना यह गम कोयल को नही बताया बस अपनी पागलपंती से उसे हँसाता। एक रोज कोयल ने रोते हुए कौए को बताया कि जिसको वो चाहती थी उसने उसका दिल तोड़ दिया! रोते-रोते बहुत कुछ बोला "उसको भूल जाउंगी, जिंदगी में बहुत कुछ करना है, ऊँची उड़ाने भरनी है!" कौआ सबकुछ सुनता रहा उसको समझाया कि "पँछी छोड़कर चले जाते है पर उनके जाने से जिंदगी खत्म नही होती आपको सिख मिलती है आप बेहतर बनते हैं!"कुछ दिनों बाद सब फिर से सामान्य हो जाता हैं, कोयल और कौआ फिरसे हँसने  और हँसी उड़ाने लगते हैं, कौआ सोचता है कभी कभी की कोयल को बता दे कि उसे प्यार हैं दोस्ती नही! पर कभी हिम्मत नही हुई फिर से अकेले हो जाने का डर उसे रोक लेता था! फिर एक रोज कोयल ने बताया उसे फिरसे किसी से प्यार हो गया है कौआ उसके सामने हँस देता हैं, पर हम तो समझ सकते हैं किया बीती होगी बिचारे कौए पर, खैर! कौआ कोयल को बधाई देता हैं और ऐसे ही दिन गुजरते हैं, पर हमारी कोयल की क़िस्मत भी अच्छी नही है, कोयल कौए को रोते हुए बताती है कि जिससे वो प्यार करती है उसने अपना परिवार किसी और पँछी के साथ बसा लिया, इस बार कोयल टूट जाती है और अकेले ही रहने का ईरादा कर लेती हैं। कौआ उसे हँसाने, साथ रहने के अलावा कुछ नही कर सकता था तो उसने बस वोही किया! कुछ दिनों बाद सब ठीक होने लगा पर लगता हैं सब सही रहना ही सही बात नही होती, तो हुआ क्या की एक रोज कौआ एक डाली पर बैठा रो रहा था अपने अकेलेपन पर परिवार को याद कर ओर पंछियों से बुराई सुनकर। कोयल कौए को रोते देख लेती हैं और जिद करने लगती है कि उसे बताए कि बात क्या हैं। कौआ अपना दर्द नही बताना चाहता था, कोयल को अपनी परेशानियों से परेशान नही करना चाहता था पर कोयल अड़ी हुई थी जानने के लिए, कौआ हार मान कर उसे बता देता हैं भाव मे बहकर वो कोयल को अपने प्यार के बारे में भी बता देता हैं, पागल! पर कोयल उसे  कहती हैं "कोई नही होता है, इससे हमारी दोस्ती में कोई बदलाव नही आएगा!" कौआ यह सुनकर खुश हो जाता हैं और अब उसके मन पर भार भी नही रहता बात छुपाने का, बाते होती है दोनों और पास आ जाते हैं, फिर एक रोज कोयल कह देती हैं कि उसे भी कौए से प्यार है पर कौआ जानता था कि कोयल शुरू से उसे दोस्त मानती हैं और कुछ नही तो उसने कहा "कोयल तुम्हे तरस खाने की जरूरत नही हैं, और झूठा प्यार करने की भी जरूरत नही है, मैं दोस्ती से खुश हूँ " पर कोयल कौए को यकीन दिला देती है, दरासल कोयल भी ग़लतफ़हमी का शिकार हो जाती हैं वो अपनी दोस्ती को प्यार समझ लेती हैं, क्योंकि कौआ उसके गम में हमेशा साथ रहा था, खैर! अब ये सिलसिला शुरू हुआ। कौआ झूठ को सच मान बैठा उसने उम्मीदे बाँध ली, खुआइसे करने लगा, दुआएं कोयल के साथ रहने की पर पंछियो ने उसकी बुराई करना बंद नही किया था वो उसको भेदभाव कराते थे उसे बताते थे कि वो कौआ है, कितनी कमिया है उसमें सब गिनाते थे, यह सब बाते उसपर बहुत बुरा प्रभाव डालती थी। उसको लगने लगा कि वो कोयल के लिए ठीक नही हैं, कोयल को कोई और मिलना चाहिए पागल! वो कोयल से कहता कि यार तू चाहे तो किसी ओर के साथ रह सकती है हम वैसे भी बहुत अलग है तू कोयल है मैं कौआ, हुम् दोस्त रह सकते है एक दम अच्छे वाले, कोयल लड़ने लग जाती हैं कहती हैं कि कौए को उससे प्यार ही नही है वो भी उसे छोड़ना चाहता है बाकियो की तरह वो कौए की फिक्र को गलत समझ लेती है और उसको गुस्से में बहुत कुछ कह देती है। कौआ इन लड़ाइयों और कोयल की बाते सुनकर यह जान जाता हैं कि कोयल को कभी कौए से प्यार हुआ ही नही था, कोयल ने गलतफ़हमी में गलत समझ लिया था। जब कौए को यह पता चला तो वो बहुत रोया, उसने तो कभी यह चाहा ही नही था कि कोयल भी उसे प्यार करे, हा ख्वाईश थी पर यू झूठा प्यार नही चाहिए था वो तो दोस्ती में भी खुश था। खैर! अब कौए ने कोयल को समझाने की कोशिश की पर कोयल समझना ही नही चाह रही थी, उसे लगने लगा कि कौआ उसे मना रहा है दूर होने के बहाने बना रहा है, इन सबमें कौए ने काफ़ी बार ये झूठ को जीने की कोशिश की पर अब कोयल की बाते उसे अंदर ही अंदर काटने लगी, उसने बहुत सोचा और एक दिन कोयल को बोल दिया कि अब हम साथ नही रह सकते, हालांकि वो साथ रहने के लिए मर रहा था पर कोयल के भले के लिए और खुशी के लिए वो नाटक करता है, और कोयल का गुस्सा सहन करता है और बहुत लड़ाई के बाद खुदसे दूर कर देता हैं। हमारा कौआ एक बार फिर अकेला हो गया, पर इस बार कौए ने फिर किसी के साथ कि तलाश नही की अब वो अकेले रहना और काए! काए! करना सीख गया।
"कौआ हूँ काला, बुरा और शोर मचाता हूँ!
कोशिश करके थक गया, अपना बनाने की,
अब अपना कोई कहाँ हैं!-काए! गाता हूँ!" The End....

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