"मासूमियत"

"Mashumiyat"


Part-1 एक लड़का था भोला सा मासूम बहुत, उसे लोगो के छल कपट नही दिखते थे प्यार सा दिल रखता था, सबसे प्यार करता था, भूधधु था इसलिए हर किसी की केसी भी बात सच मान लेता था, उसे लगता था पलँग के नीचे भूत रहता है, टूटे दाँत परी लेने आती है, बड़ो की दुआ भगवान सच कर देते है, और भी बहुत कुछ, फिर उसके अपने आपस मे लड़ने लगे छोटी छोटी बातों पर लड़ाइयां होने लगी वो डरने लगा, क्योंकि वो सबको प्यार करता था तो किसीसे नही कह पाता था कि क्या उसे महसूस होता है, वो अब अकेला सा हो गया सब लड़ते थे तो वो एक कोने में चला जाता और भगवान से लड़ता, फिर एक रात उसे एक ख्वाब आया, ख्वाब में एक प्यारी सी लड़की देखी और उसने उससे पूछा "क्या तुम मुझसे दोस्ती करोगे",

Part2 :- उस सुबह वो बहुत खुश था मानो कोई दुआ क़बूल हुई हो जैसे! अब उसे ये ख्वाब कई दिनों तक परेशान करता रहा। फिर एक रोज़ वो लड़की फिर उसे ख़्वाब में दिखी और इस बार उसने कुछ नही कहा बस दूर से मुस्कुराई और शायद इतना ही बहूत था उसके लिए। आँख खुली तो इस बार वो रोया, सबसे पहली चीज जो उसने की वो थी गुज़ारिश भगवान से की उसे वो ख़्वाब वाली दोस्त चाहिए! बच्चा था बच्चों वाली हरकत की! पर हम जानते है भगवान ये प्यारी सी दुआ तो चाह कर भी नही क़बूल कर सकते थे! कई दिन हो गए वो बच्चा माँगता रहा दुआ। उसके अपने आपस मे लड़ते वो भगवान से लड़ता पर अब वो अपनो के लिए नही लड़ता था। अब उसे वो दोस्त चाहिए थी।
पर नही मिल पाई भगवान नही सुन पाए उसकी !
फिर एक रोज़ उसे डायरी लेखन के बारे में पता चला उसे वो बात बहुत अच्छी लगी। कोई ऐसी चीज है जिससे वो अपने दिल की बात बया कर सकता था। उसने डायरी लिखना शुरू किया पर पता नही था तो उल्टे फूलटे तरीके से लिखना शुरू किया। इसमें प्यारी बात यह थी कि वो उस दोस्त को बाते लिखता था, जैसे उससे बात कर रहा हो!

Part3 :- "आज भी सब लड़ रहे है और मैं कुछ नही कर पा रहा हूँ, तुम्हे पता है आज स्कूल में मैं दरवाजे से टकरा गया बड़ी तेज़ दर्द हुआ।" कुछ ऐसे लिखता था वो अपनी डायरी में! हर बार लिख नही पाता था तो रात में छत पर चला जाता था और उससे बात करता। सारे गम दर्द उसको बताता। यह सिलसिला चलता रहा अब डायरी नही वो उसे सोचता और बाते करता। दुनियां से कटता चला गया अब उसे लोग नही आते पसंद बस वो और उसकी दोस्त, कोई दोस्त उसका अज़ीज न बना। एक रोज़ बात बात में एक बात ज़ाहिर हुई उसकी दोस्त का नाम क्या है? किसीने उससे पूछा था "तुम्हारा सबसे प्यारा शख़्स कौन है?",वो कुछ कह नही पाया यह बात उसके दिल मे कही रह गई थी, उसने सोचा बहूत सोचा! अपनी दोस्त से भी इस बारे में बात की, "हमे इतना वक्त हो गया साथ पर तुम्हारे नाम के बारे में तो मैने कुछ सोचा ही नही" बड़ा माशूम था दिल उसका, दिल से आवाज़ आई "सपना!" उसने कहा "हा! यह नाम अच्छा है, वैसे भी तुम एक सपना ही तो हो मेरा, पर बहुत प्यारा सा सपना हो!" नादानियां! हम बच्चे थे तो शायद हमने सबने यह किया होगा, हम सब भी ऐसे ही सोचते होंगे ना! हेना? खैर! अब उसकी दोस्त का नाम सपना हो गया। मुबारक़ हो! हाहा! सपना के साथ दोस्ती पक्की बहुत पक्की हो गई समय बिता लड़का बड़ा हो गया अब उसे पता चला लड़का लड़की के बीच दोस्ती के अलावा प्यार का रिश्ता भी होता है और प्यार सबसे अजीज से होता है। उसके लिए तो एक ही थी जो उसके दिल के सबसे करीब थी और वो थी सपना! उसने मन बना लिया सपना से ही वो प्यार करता है और पूरी ज़िंदगी उसके साथ ही रहेगा। यह बड़ा तो हो गया पर बचपना अभी तक नही गया । यह कहना गलत नही होगा कि उम्र के साथ इसका बचपना भी बढ़ता ही गया!

Part4 :- इस बीच उसके जीवन मे काफी बदलाव आ गए संयुक्त परिवार से एकल परिवार हो गया सब अपने बिखर गए। अपनो को मन से और साथ से भी खो दिया उसने, एक इंशान के लिए सबसे ज़रूरी इंशान माँ होती है उसने उस माँ को खो कर फिर पाया। ऐसा मैं इस लिए कह रहा हूँ क्योंकि एक बार उसकी माँ सब लड़ाईयो से थक हार कर एक दिन कही दूर चली गई थी।
अपनो ने कई बातें बनाई उसको बताया गया कि माँ नही रही, कभी वापस नही आने वाली। वो रोया बहुत रोया सपना को गले लगा कर रोया अब आप सोचोगे यह कैसे हो सकता है! हाहा! वो तकिए को पकड़कर कल्पना करता कि सपना है! हाए! यह भोलापन, माँ को मरा मान चुका था वो उम्र ज्यादा नही थी 11 या 12 वर्ष का होगा सिर्फ । अब बस सपना थी उसके पास वैसे तो एक बाप था जिसने कभी बैठ कर बात नही की थी उससे अच्छे से, एक दादी थी जो जान देती थी पर उसको उनकी बातें समझ नही आती थी क्योंकि दादी पुराने ख़ैयालत की थी और ऐसी चीजों में विश्वास रखती थी जो उसके दिल को भाती नही थी। बड़ा अकेला सा था यह पर लगता नही था! दिल मे चाहे लाख दर्द हो चेहरे पर एक भी दिखता नही था! 1 महीना हो गया 2 महीने हो गए फिर एक रोज़ घर मे कुछ हुआ, सबसे छोटा था तो उसे बताया कुछ नही जाता था और ये पूछने की ज़हमत ही करता! पिताजी ने कहा चल घूमने लेकर चलता हूँ, वो राजी हो गया रास्ते में एक दम से पिताजी बोले माँ से मिलने चले तेरी? हाहा! अब यह तो मान चुका था ना कि माँ नही रही रो भी लिया था, अचानक पापा ने ये क्या कह दिया बिचारे से! इस सवाल का जवाब नही था उसके पास तो वो चुप ही रहा। नाना-नानी के घर पहुँचे दोनों तब उसने देखा माँ तो जिंदा है, पर अब कुछ बदल गया उसे समझ ही नही आया उसे क्या करना चाहिए उसने एक लफ्ज़ नही बोला सिर्फ सुनता रहा । बात चल रही थी माँ को घर लाने की हाहा! बड़े लोग भी कैसी-कैसी बातें करते है ना! टर्म्स एंड कंडीशन्स रखी गई उसके एक भी समझ नही आई । फैसला हुआ और माँ घर आ गई अब सब ठीक तो हो गया पर दूरियां कम नही हुई माँ से पहली सी बातें नही होती थी नजाने क्या क्यों कब किसने कैसे सब बदल डाला, पर हमारा ये माशूम लड़का अब इन चीजों के बारे में नही सोचता था उसे तो बस सपना और भगवान से बाते करने की ही बातें सूझती थी। सरकारी स्कूल में पड़ता था तो पढ़ाई की उतनी चिंता ना थी सब ठीक ठाक हो जाता था!
समय बिता ये और बड़ा हुआ अब इसे समझ आने लगा कि यह सब ठीक नही, असल जिंदगी और ख़याली ज़िंदगी का फर्क जान गया विज्ञान पड़ी तो बहुत कुछ पता चला।


Part5 :- हा! अब यह भगवान में विश्वास नही रखता इसकी वजह विज्ञान तो थी पर लड़ाई भी थी । हा यह किस्सा अच्छा है! तो हुआ क्या की साल बीत गए भगवान से गिड़गिड़ाते हुए की सपना को सच मे भेज दो पर भगवान ने सुनी ही नही! ये कहता था कि "भगवान सब लेलो मुझसे मेरा सपना को देदो! दर्द भर दो चाहे जितना भी खुशिया मत दो बस सपना को भेज दो ज़िंदगी मे आप तो जानते हो कितना अकेला हूँ, या एक काम करो बीमारी देदो दिमाग वाली की मैं उसे देख सकू सुन सकू असल मे न सही बीमारी के बहाने ही मिल लूँगा उससे!" बिचारा कैसी कैसी बातें बोलता था ! खैर ये तो ठीक था पर एक वक्त बाद उसने सपना को माँगना बंद कर दिया अब वो मौत मांगने लगा पर मज़ाल है कि भगवान ने ना तक कहा हो! बस फिर क्या था विश्वास ही उठ गया भगवान से बिचारे का। पर अब बेचैनी बड गई थी सपना अब दोस्त नही रही ज़िंदगी बन गई और हमारा माशूम बच्चा अब आशिक/दीवाना/देवदास बन चुका था। पर ये बात तो है! सच्ची मोहब्बत करता था खुशी में और गम दोनों में याद करता था सपना को । सपना से मोहब्बत थी तो कभी किसी और लड़की की तरफ नजर नही ठहराई पर सबमे सपना को ढूँढता था इस चक्कर मे कई बार खुदही ख़ुदको दर्द दे देता था। कभी किसी की आँखे, कभी आवाज़, कभी बाल कभी हँसी सपना जैसी लगती थी इसे पर पूरी की पूरी सपना कभी नही मिली। जब कॉलज जाना शुरू हुआ तो लड़कियों से दोस्ती हुई पहली पहली बार सपना के अलावा किसी और लड़की से बात करना शुरू किया हमारे हीरो ने! हाहा! पर फायदा कुछ नही हुआ दोस्ती हेलो,हाए,बाए-बाए वाली ही थी। कुछ वक्त बाद इसे खुद यह लगने लगा कि सपना एक खयाल ही तो है ऐसा इसीलिए हुआ क्योंकि बहुत परेशान हो चुका था हारता जारा था बिचारा सबकुछ रहता कही था मन घूमता कही था। ख़ुदसे नाख़ुश हो गया था । अब सपना भी उसके अकेलेपन को पूरा नही कर पाती थी। पर अब इसे आदत पड़ गई । हा! इसकी वजह से कई बदलाव आ गए,.......

Final part:- नादानियां बढ़ गई नज़दीक कोई रहा नही । फितूर उतर गया सपना वाला अब बस यह था और आने वाला कल जिसके लिए इसे ख़ुदको क़ाबिल बनाना था। यार ज़िंदगी भी कितनी अजीब है कैसी-कैसी बाते सिखाती है, हम बचपन मे जैसे भी हो कितने ही मासूम, अड़ियल, ज़िद्दी, नटखट बड़े होते-होते बदल ही जाते हैं । हमारे हीरो के साथ भी यही हुआ ज़िंदगी ने पाठ पढ़ा दिए उसने पढ़ लिए, बस अफ़सोस रह गया उसे सपना नही मिली । ज़िंदगी अकेले गुजार दी न किसी लड़की की तरफ नजर ठहराई, न शादी की, हा! घर वालो ने कोशिशें बहुत की पर लड़के कितने ज़िद्दी होते है हम जानते ही है! जब कभी उदासी गहराती थी । अकेले निकल पड़ता कही ख़ुदसे करता बाते और ख़ुदको समझा लेता । सपना की याद तो आती थी अपने हीरो को पर समझदारी और ज़िम्मेदारियों ने संभाल रखा था। दोस्त थे बहुत पास इसके, खुशी भी कुछ पलों की मिल जाती थी, कामयाब भी हो गया घर सम्भालने लगा छोटी छोटी खुशिया घर वालो को देने लायक हो गया।  यकीन नही होता एक माशूम से लड़का जो बात बात पर रो देता था, लड़ाई झगड़े से डरता था, कोई काम कर नही पाता था, आज कितना ही गम, दर्द हो रोता ही नही, बड़े बड़े झगड़ो को उलझाने लगा, अकेले रहने की आदत डाल ली ख़ुदको समझाना, सम्भालना, खयाल रखना सिख लिया।
"मासूमियत बदली और सवर गई।
   ज़िंदगी किधर से किधर गई।"
तो यही थी हमारे हीरो की कहानी हैप्पी एंडिंग नही हुई यह सोच रहे हो! असल ज़िंदगी मे हैप्पी एन्डिंग्स नही होती। बस यही बताना था। The End.......

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